Thursday, July 17, 2008
Quotation on Terrorism
Quotation on Abandoned Children
Long forgotten Values
Success And Failure
Sorrow and Happiness
Strange Ways Of Human Behaivour
Quotation on Relationship
बंद आंखों के सपने
ढूँढ रही थी ये पलकें , पल कुछ इत्मीनान के
जब आंखों में बसे सपनों का ज़र्रा ज़र्रा
डूब रहा था मदहोशी में /
सूकून के दो पल बस यही थी चाह
इस बेकरार मन की , कि तभी आहट हुई
एक साया लहराया , लगा मानो खामोशी को मिल गई एक ज़ुबां
बेकरार मन को करार आ गया हो , और फिर लगा कि
बस मंज़िल मिल गई , कि तभी सपनों से भरी आंखों से
छलक गए सब आँसू और छलक गए उन बंद आंखों के सपने /
Tuesday, July 15, 2008
एक अहसास
ज़िन्दगी की खूबसूरती बयां करता है ,
जहाँ हर कदम ,
आदमी अपने ही जज़्बातों से डरता है /
इंसानी रिश्ते और उनका अहसास ,
अनजान होकर भी अपना सा लगता है ,
पर एक बार अपना बन जाने पर ,
बेवफ़ा बेगानों से भी अनजाना सा लगता है /
जब अपना साया भी साथ छोड़ जाए ,
अहसास ही साथ देता है ,
हर कदम हर मोड़ पर ,
अपनी पहचान छोड़ देता है /
अहसास की दुनिया में अपनों का साथ ,
किसी के साथ का अहसास ,
तकदीर नहीं ,
तदबीर की है आस /
यूँ तो बंद आँखों में ,
सपना सजता है ,
पर खुली आँखों में तो ,
अहसास जगता है /
अहसास जो एक लब्ज है ,
जज़्बातों की कहानी है ,
जिसका हर रंग ,
सादगी की जिंदगानी है /
लब्ज नहीं होते ,
तो भी अहसास होता ,
जुबां नहीं होती ,
तो भी अहसास होता /
क्यूंकि अहसास ही ,
ज़िन्दगी की पहचान है ,
अहसास ही ,
ज़िन्दगी की दास्ताँ है /
जहाँ ज़िन्दगी का हर रुख ,
अहसास के नाम है /
अगर अहसास के पंख होते ,
तो हर इंसान आबाद होता ,
दर्द के साये में भी ,
उसके सर पर ताज होता /
Monday, July 14, 2008
मूट्ठी से खिसकती रेत
ज़िंदगी मुट्ठी से खिसकती रेत सी ,
जहाँ मूक श्रोता बन , अपनी ख़ुद की ज़िंदगी को ,
समेटने में असमर्थ पाती मैं /
जहाँ ज़िंदगी के थपेड़ों में उलझती मैं,
और मेरे सपने /
लेकिन ये विराम नहीं ,
कल फिर सुबह होगी /
और सूरज की किरणों से धुंधली पड़ी लकीरें ,
उभरेंगी मेरे मानस पर ,
फिर समेटूंगी हर बिखरे तार को ,
जोड़ोंगी एक बार फिर ,
और सृजन करुँगी अपने उज्वल भविष्य का /
जिसमें मुस्कराएगा हर स्वप्न मेरा ,
और इबादत गुनगुनाएगा हर गीत मेरा /
मुट्ठी से खिसकती रेत से फिर ,
एक घरोंदा बनाऊँगी मैं /
उन्मुखत भावनाएँ
इनकी अभिव्यक्ति का सम्बन्ध भावनाओं से है ,
बोद्विक मूल्यों से नहीं/
शब्दों के मोहताज बोद्विक मूल्य हो सकते हैं,
किंतु भावनाएँ कदापि नहीं /
भावनाएँ तो विमुक्त होती हैं जो विचरती हैं,
एक हृदय से दूसरे हृदय की तरंगों के माध्यम से ,
जिन्हें न कोई शब्द की,
न कोई भाषा की ,
और ना ही किसी स्वीकृति की जरुरत है /
ये तो दिल की गहराईओं से निकलते हैं,
और दिल की गहराईओं में ही समा जाते हैं /